Monday, July 27, 2020

विधायक सरयू राय के निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, विधायक के पुस्तक मैनहर्ट नियुक्ति घोटाले से प्रेरित "लम्हों के खता" का विमोचन, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दिया जवाब...


जमशेदपुर: झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री को जेल भेजने वाले पूर्वी जमशेदपुर के विधायक सरयू राय तीसरे पूर्व मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास को निशाने पर लिए हुए हैं। जिसके लिए उन्होंने अपनी एक पुस्तक मैनहर्ट नियुक्ति के घोटाले से संबंधित लम्हों की खता का विमोचन रांची स्थित अपने आवास पर आज कर दिया है, जिसमें अतिथि रूप में झारखण्ड सरकार के पूर्व मुख्य सचिव, अशोक कुमार सिंह उपस्थित थे। विधायक सरयू राय ने श्री दास पर निशाना साधते हुए कहा कि इस पुस्तक का विमोचन करते हुए मुझे काफी प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने कहा कि पुस्तक में मुख्य रूप से परामर्शी के चयन में हुई अनियमितता एवं भ्रष्टाचार का उजागर किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से झारखण्ड के निवासियों को मेनहर्ट परामर्शी में हुई घोटाले की वास्तविक जानकारी मिल पायेगी। 2005 में अर्जुन मुण्डा सरकार में नगर विकास मंत्री रघुवर दास बनाये गये। उन्होंने डीपीआर फाइनल करने के लिए 31 अगस्त को एक बैठक बुलाई और उसमें निर्णय लिया गया कि पूर्व से चयनित परामर्शी को हटा दिया जाये, क्योंकि उन्होंने काफी देर कर दिया है। उन दो परामर्शियों से एक परामर्शी हाईकोर्ट गया। झारखण्ड हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेशन एक्ट के तहत एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को आरबिट्रेटर नियुक्त किया। आरबिट्रेटर ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला दिया कि ओआरजी परामर्शी को हटाने का फैसला सही नहीं था। श्री राय ने बताया कि नगर विकास विभाग ने ग्लोबल टेंडर के आधार पर पुनः निविदा निकाल कर मेनहर्ट नामक एक परामर्शी का चयन कर लिया है। सरयू राय ने बताया कि ग्लोबल टेंडर में विश्व बैंक के मानदंडों के हिसाब से त्रिस्तरीय निविदा पद्धति होती है किंतु उस पद्धति का भी अनुपालन नहीं किया गया। उस समय से आज तक रांची में सिवरेज- ड्रेनेज का निर्माण नहीं हुआ। लम्हों की ख़ता के कारण ही आज रांची शहर उसका खामियाजा भुगत रहा हैं, और यह सिलसिला न जाने कब समाप्त होगी ?
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस मामले में अपना बयान जारी किया है. रघुवर दास ने कहा है कि सरयू राय की किताब मैनहर्ट पर आई है, जिसमें मेरे नाम का उल्लेख है. ऐसी स्थिति में झारखंड की जनता को सच जानने का अधिकार है. यह एक ऐसा मामला है, जिसे विधायक सरयू राय समय-समय पर उठाकर चर्चा में बने रहना चाहते हैं. उन्होंने पहले भी कई बार इस मुद्दे को उठाया है. जनता यह जानना चाहेगी कि आखिर बार-बार मैनहर्ट का मुद्दा उठाकर राय जी क्या बताना चाहते हैं? जिस मैनहर्ट पर यह किताब है, वह मामला बहुत पुराना है. इसकी जांच भी हो चुकी है. सचिव ने जांच की, मुख्य सचिव ने जांच की, कैबिनेट में यह मामला गया. भारत सरकार के पास मामला गया. वहां से स्वीकृति मिली. कोर्ट के आदेश के बाद भुगतान किया गया तो क्या कोर्ट के आदेश को भी नहीं मानते हैं राय जी. रघुवर दास ने कहा कि क्या यह माना जाए कि सरकार से लेकर न्यायालय के आदेश तक, जो भी निर्णय हुए वह सब गलत थे और सरयू राय जी ही सही हैं. यदि उन्हें लगा कि कोर्ट का आदेश सही नहीं था तो वे अपील में क्यों नहीं गये? कोर्ट नहीं जाकर अब किताब लिख रहे हैं. यहां गौर करने की बात यह है कि जिस समय भारत सरकार ने इसे स्वीकृति दी, उस समय केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और झारखंड में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भाजपा-झामुमो गठबंधन की सरकार थी. जिस समय कोर्ट के आदेश पर भुगतान हुआ उस समय न तो मैं मुख्यमंत्री था और ना ही मंत्री. जब मैं नगर विकास मंत्री था, उस समय मैनहर्ट के मामले में मैंने कमेटी बनवाई थी. उसके बाद की सरकारों ने इस पर फैसला लिया, तो मैं इसमें कहां आता हूं? सच यह है कि राय जी मेरी छवि धूमिल करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं. यह किताब भी मेरी छवि खराब करने की नीयत से लिखी गई है.

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